मेंहदी, झूले, श्रृंगार,लहरिया और घेवर का त्यौहार हरियाली तीज कल है । आज सिंजारा है । तीज हो या अन्य त्यौहार राजस्थान में उल्लासपूर्ण एवं पारम्परिक ढंग से मनाए जाते है । तीज की तैयारियां हो गई है । सिंजारे पर महिलाएं सज धज रही है । ब्यूटीपार्लर पर दो दिनों से जबरदस्त भीड है ।
महिलाएं तीज पर मेंहदी लगाकर झूलों पर सावन का आनंद मनाती हैं, प्रकृति धरती पर चारों ओर हरियाली की चादर बिछा देती है, और मन मयूर नाच उठता है।जिस लड़की के ब्याह के बाद पहला सावन आता है, उसे ससुराल में नहीं रखा जाता। इसका कारण यह भी था कि नवविवाहिता अपने अपने माता पिता से ससुराल में आ रही कठिनाइयों, खटटे् मीठे अनुभवों को सखी सहेलियों के साथ बांट सके,और मन हल्का करने के अलावा कठिनाईयों का समाधान भी खोजा जा सके।
हाथों पर हरी मेंहदी लगाना प्रकृति से जुड़ने की अनुभूति है जो सुख-समद्धि का प्रतीक है। इसके बाद वही मेंहदी लाल हो उठती है जो सुहाग, हर्षोल्लास एवं सौंदर्य का प्रतिनिधित्व करती है।
किदंवती है कि देवी पार्वती को 108 जन्मों तक प्रतीक्षा करनी पड़ीं थी तब कहीं भगवान शिव ने उन्हें अपनी पत्नी के रूप में स्वीकार किया। और तीज के तीन दिन के त्यौहार में भगवान शिव और पार्वती के पुनर्मिलन का उल्लेख किया गया है।तीज तीन प्रकार की है, हरियाली तीज, जब महिलाएं चंद्रमा की पूजा करती हैं,कजरी तीज जब महिलाएं नीम के पेड़ की पूजा करती हैं, और सबसे महत्वपूर्ण हरितालिका तीज, जब महिला अपने पति की लंबी उम्र के लिए उपवास करते हैं।
उत्तर में तीज देवी पार्वती के प्रति सम्मान के के रूप में और अपने पतियों की लंबी उम्र के लिए प्रार्थना करती हैं।यह त्यौहार केवल विवाहित महिलाओं के लिए सीमित नहीं है, बल्कि कुँवारी लड़कियां भी इस दिन एक अच्छे पति के लिए प्रार्थना करती हैं और उपवास करती हैं।महिलाये इस दिन पारंपरिक डिजाइन के कपड़े पहनती हैं अपने हाथों और पैरों पर मेहंदी लगातीं हैं। कई महिला इस त्योहार के लिए अपने माता-पिता के घर जाती हैं, और रक्षा बंधन तक रहती हैं, जहां महिलाएं अपने भाइयों के लिए प्रार्थना करती हैं। तीज पर विवाहित महिला या दुल्हन के लिए उसके ससुराल वाले कुछ उपहार देते हैं।इसे एक शुभ अवसर भी माना जाता है।
देवी पार्वती या तीज माता की प्रतिमा, सोने के गहने और सुंदर रेशम से सजाए जाते हैं।यह संगीत, नृत्य और कई भक्तों के साथ शहर के चारों ओर घुमाया जाता है। तीज जयपुर में दो दिवसीय उत्सव है। इस दिन का हर किसी को बेताबी से इंतजार रहता है ।लेकिन कोरोना ने सब कुछ भूला दिया है ।हरियाली तीज मुख्यतः स्त्रियों का त्यौहार है जो श्रावण मास की शुक्ल पक्ष की तृतीया को म माता पार्वती और शिव जी की पूजा की जाती है। इस दिन स्त्रियों के मायके से श्रृंगार का सामान और मिठाइयां उनके ससुराल भेजी जाती हैं। महिलाएं सुबह घर के काम और स्नान करने के बाद सोलह श्रृंगार करके निर्जला व्रत रखती हैं। विधि विधान पूजा करने के बाद व्रत कथा सुनती हैं।
हरियाली तीज के दिन महिलाएं सुबह उठकर स्नानादि से निवृत होकर पूजा स्थल पर माता पार्वती और भगवान शिव को साक्षी मानकर व्रत का संकल्प लेती हैं. पूरे दिन निर्जली व्रत रखकर शाम को भगवान शिव और माता पार्वती की पूजा करती हैं और पति की लंबी आयु का वरदान मांगती हैं पूजा में गीली काली मिट्टी या बालू रेत, बेलपत्र, शमी पत्र, केले का पत्ता, धतूरे का फल एवं फूल, अकांव का फूल, तुलसी, मंजरी, जनैऊ, कलेवा/लच्छा या नाड़ा, वस्त्र, सभी प्रकार के फल एवं फूल पत्ते, श्रीफल, कलश, अबीर, चंदन, घी-तेल, कपूर, कुमकुम, दीपक, फुलहरा और विशेष प्रकार की पत्तियां इनमें शामिल हैं।
कई स्थानों पर केले के पत्तों से मंडप बनाकर भगवान शिव और माता पार्वती की प्रतिमा स्थापित की जाती है। पार्वती जी को सुहाग का सारा सामान चढ़ाया जाता है। और इस पूरे दिन निर्जला व्रत रखा जाता है। फिर रात में भजन-कीर्तन किया जाता है और शिव-पार्वती विवाह की कथा सुनी जाती है।नवविवाहित पुत्री की ससुराल से सिंगारा आता है, और ऐसी ही सामग्री का आदान प्रदान किया जाता है ताकि संबंध और मधुर हों और रिश्तेदारी प्रगाढ़ हो।इस दिन 3 श्रृंगार का विशेष महत्व है.. मेंहदी, चूड़ियां और लहरिया साड़ी
इसमें उसके लिए साड़ियां, सौंदर्य प्रसाधन, सुहाग की चूड़ियां व संबंधित सामान के अलावा उसके भाई बहनों के लिए आयु के अनुसार कपड़े, मिष्ठान तथा उसकी आवश्यकतानुसार गिफ्ट भेजे जाते हैं। तीज के दिन सुबह स्नानादि श्रृंगार करके, नए वस्त्र व आभूषण धारण करके गौरी की पूजा होती है। इसके लिए मिट्टी या अन्य धातु से बनी शिवजी-पार्वती व गणेश जी की, मूर्ति रख कर उन्हें वस्त्रादि पहना कर रोली, सिंदूर, अक्षत आदि से पूजन किया जाता है।
इसके बाद 8 पूरी, 6 पूओं से भोग लगाया जाता है। फिर यह बायना जिसमें चूड़ियां, श्रृंगार का सामान व साड़ी, मिठाई, दक्षिणा या शगुन राशि इत्यादि अपनी सास, जेठानी, या ननद को देते हैं।तीज पर ही माता गौरा विरह में तपकर शिव से मिली थी। ये तीन सूत्र सुखी पारिवारिक जीवन के आधार स्तंभ हैं, जो वर्तमान आधुनिक समय में और भी प्रासंगिक हो जाते हैं।