प्रेमी सावन बरसा
आलिंगन करने तरसा
धरा ने किया श्रृंगार
श्रावण बना सांवरिया
बदरिया नाचने लगी
बूंदों के घुंघरू बांध
बादल ने प्रेम दिखाया
दामिनी ने अलख जगाया
झूलों की दीवानगी देखो
इंतजार में मन हर्षाया
तरूओं का प्रकृति प्रैम
हरा रंग जामा पहनाया
निहार रही बैरनिया
प्रेमी सावन की राह में
बिछा रही फूल सौतनिया
घनघोर घटा छाय निराली
बुला रहे यादों के झूले
उर में कसक उठत रही
सावन मेह बरसा रहा
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अर्चना माथुर
अर्चनालोक, जयपुर