राम अयोध्या लौट के आये
मनीथीं खुशियांरामराज्यकी,
प्रजाजनों ने दीप जलाये
अंधकार पर जय प्रकाश की।
तब ही से है चली आ रही
दीपावली यही परंपरा की,
है सब कुछ वैसा का वैसा
नहीं याद है रामराज्य की।
परिवर्तन है नियम सृष्टि का
सब रक्खें चाह बदलने की,
बदलें अब रूप दीवाली का
है जरूरत कुछ परिवर्तन की
चले हवा परिवर्तन की अब
सामाजिक बदलावों की,
सभी मनायें अब दीवाली
बदले हुए आयामों की।
जलें दीप दीवाली के तो
अंधियारी छंट जायें मन की,
मनाई जाये अब दीवाली
शिक्षा में 'नवाचारों' की।
घटा 'रूढ़ियों' की छंट जाये
फसल हो नये विचारों की,
मनाई जाये अब दीवाली
सोच के नव आधारों की।
'धूम धड़ाके' में ना फूंकें
दीवाली हो इस प्रण की,
धन के महत्व को पहचाने
दीवाली हो 'मितव्यता' की।
शोर पटाखे धुआं नहीं अब
लेवें सुध 'पर्यावरण' की,
वायु-ध्वनि 'प्रदूषण' ना हो
हो दीवाली 'प्राणवायु' की।
दीपों की ऐसी हो जगमग
ख्याति बढ़े 'उजियारे' की,
'जागृति' हो जाये समाज में
दीवाली हो अंत अधेरे की।
खान-पान घर ही का हो
थाली बने 'शुद्धता' की,
'सेहतमंद' हो देश मनाये
दीवाली 'स्वास्थ्यवृद्धि' की।
युवा पीढ़ी मिलके बनजायें
'दीपमाला' 'उजियारे' की,
भ्रष्टाचारी अंधकार पर
विजय हो अब सुउजास की।
दीपों से रोशन हर घर हो
दीवाली दीप प्रज्जवलन की,
सीमित महलों तक नहीं रहे
मनजाये दीवाली कुटियों की।
तन मन में भर के उदारता
रोशन करें कुटिया वंचित की,
मधुर तान से मिला के स्वर
दीवाली हो 'जन गीतों' की।
प्रदीप माथुर
अलवर