राम के जीवन
से जुड़ी एक
प्रसिद्ध घटना है,
जिसे रामायण को
थोड़ा बहुत जानने
वाला भी सुन
चुका है | घटना
उस समय की
है जब सुग्रीव
बाली से बचकर
ऋष्यमूक पर्वत पर जा
बसा था | तभी
माँ सीता की
खोज के क्रम
में राम की
सुग्रीव से भेंट
हुई | सुग्रीव ने
राम को बाली
द्वारा राज्य हड़प लिए
जाने तथा स्त्री
को छीन लिए
जाने की व्यथा
कथा सुनाई और
मित्र बने राम
ने सुग्रीव को
सहायता का वचन
दिया | राम के
कहने पर जब
सुग्रीव ने बाली
को युद्ध के
लिए ललकारा तब
पेड़ की ओट
से छिपकर देख
रहे राम ने
बाली पर तीर
चला दिया | प्रत्यक्ष
रूप से युद्ध
न करने पर
भी बाली का
वध करना क्यों
अनुचित नहीं था
उसका कारण यह
है कि
“अनुज बधू
भगिनी सुत नारी,
सुन सठ सम
कन्या ये चारी
|
इन्हहि
कुदृष्टि विलोकहि जेई, ताहि
बढ़े कछु पाप
ना होई ||”(रामचरितमानस)
छोटे भाई की
पत्नी कन्या समान
होती है और
उस पर कुदृष्टि
डालने वाला पातक
मृत्यु का ही
अधिकारी है और
यही सनातन संस्कृति
भी है इसलिए बाली को
मारना कदाचित मर्यादा
का उल्लंघन नहीं
था |
अगले जन्म
में कृष्ण अवतार
लिए हुए राम
जब कुरुक्षेत्र के
युद्ध के समापन
के बाद छत्तीस
वर्ष द्वारिका में
राज करने के
उपरान्त संन्यास लेकर वन
की ओर निकले
तब एक वृक्ष
के नीचे विचारमग्न
लेटे श्रीकृष्ण को
एक शिकारी द्वारा
मृग समझकर चलाया
गया तीर श्रीकृष्ण
के देहावसान का
कारण बना , यही
शिकारी पूर्व जन्म का
बाली था | त्रेतायुग
में जिस बाली
को राम ने
वृक्ष के पीछे
छिपकर मारा था,
उसी को अगले
जन्म में अपने
लिए वैसी ही
मृत्यु का अधिकार
दे दिया |
यही है
वास्तव में मर्यादा
पुरुषोत्तम राम की
वास्तविक मर्यादा, विनम्रता, निश्छलता
और सद्भाव | जो
शत्रु को मात्र
मृत्यु दंड देने
में विश्वास नहीं
रखते वरन् उसे
प्रतिकार लेने का
अधिकारी भी बना
देते हैं | ऐसे
मर्यादा पुरुषोत्तम राम निरपराध
शंबूक का वध
कर ही नहीं
सकते | शंबूक वध को
राम के जीवन
से जोड़ने के
पीछे एक मात्र
उद्देश्य राम की
छवि को धूमिल
करना रहा है
| शंबूक वध की
कथा की वास्तविकता
अगले लेख में
| इस लेख का
अंत इस सुन्दर
चौपाई से –
“
सो केवल भगतन
हित लागी,
परम
कृपाल प्रनत अनुरागी
|
जेहि
जन पर ममता
अति छोहू,
जेहि
करुना करि कीन्ह
न कोहू ||” (रामचरितमानस)